Wednesday, December 8, 2021

मातृभूमि


मातृभूमि की ये हवा एक इशारा है हिमालय जैसे ढाल की,

जो रोकती है बर्फीली हवा को जो होती है उत्तरी गोलार्ध की,

और भारत में प्रवेश कर बन जाती है कहीं मौसमी हवा,

जैसे की बसंत, ग्रीष्म, बरसात, और सरदिली हवा,



    मातृभूमि की ये नदिया हैं हिमालय की शान ,

    जहां पे श्रोत है इनकी जहां होते हैं इनके प्राण,

जीवनदायनी ये नदिया सहर गांव बसाती है जहां जाति है,

कहीं नहर बन धान उगाती हैं तो कहीं पे कपास उगाती है,

     फिर जा के समंदर में मिलते ही हो जाति हैं एक,

      सिखाती है सबको माया है सबको जो है अनेक,



मातृभूमि की ये मिट्टी ने हमेशा दिया हमको,

हमने ही प्रखर रूप से आभार न जताया इसको,

ये मिट्टी हमे देता है अनाज, पानी और कपड़े,

तो कभी देता है रेत जिस से बनता है घर-बसेरे।


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