एक तरह को जंग है एक उमड़े हुए ढंग में,
दुनिया कहती है जिसे इंसानियत, वो उड़ता है मखौल में,
एक तरह की रंग है इस दुनियादारी के बदरंग में,
तरंग वो नहीं जो बस चढ़ता जाए होशो हवास पर,
ये जमीन से भी उतना ही जुड़ा होना चाहिए हर हाल में,
तरंग वो नहीं जो बस बढ़ता जाए मन उदास पर,
ये हर जगह रोजी रोटी की दौड़ में भगाती है साल दर साल में,
तरंग एक तरफा भी हो सकती है जन मानस के लिए,
इसके लिए चाहिए एकता, सहनसक्ति और वैश्विक समाधान (रिजॉल्व) हो,
एक समाधान जो बना दे हर आदमी के दृढनिश्चय के साहस के लिए,
तरंग ही है वो जो है एकाकार शून्य इस जन मानस में जो महान हो।।